मातृभाषा
के प्रति
हिंद की
ये भाषा
हिंदी हिन्दुस्तानी, हिंद की ये भाषा
इस हिंदी में छिपी हुई है, उन्नति की परिभाषा
माँ भारत की उर माला का, मध्य पुष्प है हिंदी
माता के मस्तक पर, जैसे शोभित होती बिंदी
यह भरती गागर में सागर, लिखता जग देख ठगा सा !!
इस हिंदी में महाकाव्य रच तुलसी हुए महान
अर्थ गंभीर ललित श्रृंगारिक, सब करते गुणगान
नीराजन यह है स्वदेश का, जन-जन की यह आशा !!
अपनी संस्कृति, मर्यादा, अपनी भाषा का ज्ञान
यही एक पाथेय हमारा, रहे सदा यह ध्यान
हिंदी सेवा में जुट जाएँ, झटके दूर हताशा !!
अपनी भाषा की समर्थता से, सामर्थ्य बढ़ाएँ
प्रगति वास्तविक है तब ही, जब सब हिंदी अपनाएँ
भारत का उत्थान है हिंदी, अमृत घट झरता सा !!
हिंदी पर गर्व करेंगे जब हम, देश महान बनेगा
दिग दिगंत में व्यापित हिंदी नवल वितान बनेगा
भारत का सम्मान करेगा अम्बर झुका-झुका सा !!
नीलकमल वैष्णव "अनिश"
१२ सितंबर २०११ |
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