मातृभाषा के प्रति


हिंदी दिवस

जिनकी यह भाषा वही इसको भूले, कि भारत में हिंदी क़दर खो रही है !
हिन्दी दिवस पर ही हिन्दी की पूजा, इसे देख हिंदी बहुत रो रही है !!

हर एक देश की एक भाषा है अपनी, उसे देशवासी हैं सर पर बिठाते,
मगर कैसी निरपेक्षता अपने घर में, हम अपनी ज़ुबां को स्वयं भूले जाते,
मिला सिर्फ एक दिन ही पूरे बरस में, यह हिन्दी की क्या दुर्दशा हो रही है !!

कि जिसके लिए खून इतने बहाए, जवानों ने अपने गले भी कटाए,
कि जिसके लिए सरज़मीं लाल कर दी, जवानी भी पुरखों ने पामाल कर दी,
तड़पते थे कहने को हम जिसको अपनी, वही हिन्दी भाषा कहाँ खो रहे है !!

अब्बा पिताजी, अम्मा और अम्मी, अंग्रेजियत में बने डैडी मम्मी,
कहें डैड जो अपने जीवित पिता को, वह क्या अग्नि देंगे पिता की चिता को,
अंकल कज़िन में सभी रिश्ते बाँधे, यह रिश्तों की क्या दुर्गती हो रही है !!

है क़ानून सब काम हिन्दी में करना, मगर सबको पड़ता है अंग्रेज़ी पढ़ना,
यहाँ जिसको अंग्रेज़ी आती नहीं है, न मुमकिन है उसको कोई काम मिलना,
मिली जबसे आज़ादी हिन्दी के खेतों में, अंग्रेज़ियत की फ़सल हो रही है !!

कुँवर शिवप्रताप सिंह
१२ सितंबर २०११

 

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