हिन्दी! ना बनना तुम केवल माथे की बिन्दी,
जब चाहा सजाया माथे पर,
जब चाहा उतारा फ़ेंक दिया।
हिन्दी! तुम बनना हाथों की कलम,
और जनना ऐसे मानस पुत्रों को,
जो कबीर बन फटकारे,
जाति धर्म की दीवारें तोड़ हमें उबारे।
जो सूर बन कान्हा की नटखट केलियाँ दिखलाए,
जीवन के मधुवन में मुरली की तान सुनाए।
जो मीरा बन हृदय की पीर बताए,
दीवानी हो कृष्ण की और कृष्णमय हो जाए।
हिन्दी! मत बनना तुम केवल माथे की बिन्दी,
जन-जन की पुकार बनना तु्म ।
छा जाना तुम सरकारी कार्यालयों में भी,
सभाओं में, बैठकों में, गोष्ठियों में
वार्तालाप का माध्यम बनना तुम्।
हर पत्र-परिपत्र पर अपना प्यारा रूप दिखाना तुम्।
हिन्दी! छा जाना तुम मोबाइल के स्क्रीनों पर
रोमन के रंग में न रंगना
देवनागरी के संग ही आना।
केवल रोज डे या फ़्रेंडशिप डे पर ही नहीं
ईद, होली और बैशाखी पर भी,
शुभकामनाएँ देना तुम,
भावों की सरिता बहाना तुम्।
हिन्दी! तुम बनना
देवनागरी में लिखती उँगलियाँ
अंतरजाल के अनगिनत पृष्ठ बनना तुम,
रुपहले पर्दे को अपना स्नेहिल स्पर्श देना तुम,
उदघोषिका के चेहरे की मुसकान में
संवाददाता के संवाद में
पत्रकार की पत्रकारिता में
छा जाना तुम
रुपहले पर्दे को छूकर सुनहरा बना देना तुम।
हिन्दी! तुम कभी ना बनना केवल माथे की बिन्दी,
तुम बनना जन गण मन की आवाज,
तुम बनना अनुभूति की अभिव्यक्ति
पंख फ़ैलाना अपने
देना सपनों को परवाज।