मातृभाषा के प्रति


हिंदी की मशाल

हिन्दी का हाथ थाम लें,
भारत की जय के वास्ते,
प्रसार से, विकास के,
खुलेंगे सारे रास्ते।

अभिव्यक्ति में है
श्रेष्ठतम, सरल, सरस है भाव में,
सुबोधिनी, सुभाष्य है, समृद्ध है विधाओं में।
आगे रहेगी सर्वदा, जो हक़ इसे दिला सके,
प्रसार से, विकास के,
खुलेंगे नए रास्ते।

है
संस्कृति का
लेख ये, अमिट है सत्य सार है,
नित नए विकल्प का, खुला प्रवेश द्वार है।
है पथ प्रशस्त कर रही, जो हम दिशा को पा सके,
प्रसार से विकास के,
खुलेंगे सारे रास्ते।

अब तो
देश-देश में, बुलंदियों को छू रही,
गूढ भाव भाविनी, ये कह रही है अनकही।
मशाल इसकी विश्वजाल पर अगर जला सके,
प्रसार से, विकास के,
खुलेंगे सारे रास्ते।

- कल्पना रामानी
१२ सितंबर २०११

 

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