हिन्‍दी पखवारा

माह सितम्बर-दिन चौदहवाँ
हाँ! पखवारा
मनना तय है।

शब्द, अर्थ पाने को व्याकुल
जिन्दा टँगना किसे सुहाता!
दुर्दिन देख चुका कैलेण्डर-
तारीखें देते कतराता।

आँख मूँद लेना सम्भव है
मगर कान हैं-
सुनना तय है।

मुहरबंद लिफाफे गायब
संदर्भों के घाट अधूरे
वही डुगडुगी, वही मदारी
मगर नाचते नये जमूरे

इंच-इंच का अंतर अब तक
अरसे से पुल
बनना तय है।

नये बाड़ में उन्हीं पुराने
बूढ़े सपनों की निगरानी
उम्मीदों का सूरज भी तो
कर सकता है आनाकानी

अक्षर-अक्षर यक्ष प्रश्न जब
फिर तो भौहें
तनना तय है।

- शुभम श्रीवास्तव ओम   
१ सितंबर २०१५

 

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