हिन्दी का बोलबाला

कुछ भी तो नया नहीं
कुछ भी नहीं निराला।
बरसों से ही जगत में
हिन्दी का बोलबाला।

अनुवादों की भाषा में तो
कब से मान-सम्मान है
सुर सरिता की लहरों में भी
इसका ही गुणगान है

परदेसी के मन में हर पल
जलती ज्योत ज्वाला।

अक्षर-अक्षर जादू इसमें
भाषा ज्ञान विवेक की
जन्मी, पाली कई बोलियाँ
दात्री नेक अनेक की

इससे ही तो गुणी लेखनी
ज्ञानी की करमाला।

मन में चिर विश्वास हमें यह
नखत लोक तक जाएगी
धरती अम्बर सागर तल में
ध्वज अपना फहराएगी

सर्जन की निधियों को कितने
यत्नों से सम्भाला।

- शशि पाधा 
१ सितंबर २०१५

 

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