हिन्दी पर अभिमान

हमको अपनी हिन्दी प्यारी
हिन्दी पर अभिमान।

इसकी जड़ को मठा पिलाने
मैकाले आया।
दो सौ वर्ष रहा शासन पर
मिटा नहीं पाया।

चाटुकार अब भी करते हैं
अँग्रेजी गुणगान
हमको अपनी हिन्दी प्यारी
हिन्दी पर अभिमान।

धीरे-धीरे हरी दूब-सी
फैल रही जग में।
डाल रहे हैं नित्य विरोधी
रोड़े भी मग में।

हर बाधा को पार कर रही
बढ़ती बिना गुमान।
हमको अपनी हिन्दी प्यारी
हिन्दी पर अभिमान।

हर भाषा को मान सहोदर
हँस-हँस गले लगाती।
खुद को श्रेष्ठ जता अँग्रेजी
जाने क्यों इतराती।

नहीं कठिन, हिन्दी तकनीकी
दूर नहीं विज्ञान।
हमको अपनी हिन्दी प्यारी
हिन्दी पर अभिमान।

बता-बता कर कठिन विरोधी
उड़ा रहे खिल्ली।
कैसे बने राष्ट्र की भाषा
चुप बैठी दिल्ली।

सबसे ज्यादा होगा इकदिन
हिन्दी का सम्मान।
हमको अपनी हिन्दी प्यारी
हिन्दी पर अभिमान।

- सन्तोष कुमार सिंह 
१ सितंबर २०१५

 

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