पहरूओं कहाँ तुम्हारा ध्यान

जिस कोकिलकंठी मैना में
भारत माँ के प्रान
चिड़ीमार उस हिन्दी पर ही
ताने तीर-कमान
पहरूओं कहाँ तुम्हारा ध्यान।

जिसकी हलवाही 'टिक-टिक' में
मस्त पछाहीं जोड़ी
आसमान के चौमासे में
"टिटिहुट्ट'' की "तोड़ी'

जिस भाषा में करें बतकही
खेत और खलिहान
चिड़ीमार उस हिन्दी पर ही
ताने तीर-कमान।

"ज़ोर लगाके हइसा" वाली
मजदूरों की ताकत
यह "हइया हू" की स्वर लहरी
सागर जय की चाहत

जिसके संवादों पर गरजें
दसकंधर-हनुमान
चिड़ीमार उस हिन्दी पर ही
ताने तीर-कमान।

इसकी रूपमाधुरी का
गायन करते कलकंठ
इसके वैभव से वंचित जन
कहलाते हैं लंठ

जिसके बलबूते कितनों की
ऊँची चले दुकान
चिड़ीमार उस हिन्दी पर ही
ताने तीर-कमान।

- रामशंकर वर्मा    
१ सितंबर २०१५

 

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