माथे की रोली


मातृ भारती के ललाट पर
सजी हुई रोली है हिंदी
जन-जन की बोली है हिंदी।

खुसरो-सूर-कबीर-जायसी
वृन्द-बिहारी-भूषण-तुलसी
भारतेंदु-मैथिली-निराला
पन्त-महादेवी महीयसी

इंशा अल्ला, प्रेमचंद औ’
बुल्के की टोली है हिंदी
जन-जन की बोली है हिंदी।

भारत माता की अभिलाषा
हिंदी हो संसद की भाषा
संतो की वाणी कल्याणी
हिंदी स्वाभिमान की आशा

शब्द-अर्थ-लय-भावबोध की
अनुपम रंगोली है हिंदी
जन-जन की बोली है हिंदी।

हिंदी में हम कार्य करेंगे
तकनीकी साहित्य रचेंगे
सार्थक होगा सृजन हमारा
राष्ट्रोन्नति के दीप जलेंगे

शस्य-श्यामला-बसुन्धरा की
आशा की झोली है हिंदी
जन-जन की बोली है हिंदी।

- राजेन्द्र वर्मा 
१ सितंबर २०१५

 

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