श्रद्धा से हिन्दी को नमन

अंकित अक्षित संस्कार हो
मातॄ-भू नमन जयकार हो
खुले ज्ञान के सब द्वार हों
निज भाषा से पर प्यार हो

अलंकृत करे हर अंजुमन
श्रद्धा से हिन्दी को नमन

अंतरस्थ भाव करे प्रकट
अभिव्यक्ति अंतस के निकट
संभव उसी भाषा में बस
मिट्टी की जिसमें गंध रस

इसी सत्य का हो आचमन
श्रद्धा से हिन्दी को नमन

जिस भाषा में अंतरंग से
सुखदुख सदा छंटे-बँटे
निरंतर जिसे भाषित किए
बालपन से बुढापा कटे

उस भाषा का ना हो दमन
श्रद्धा से हिन्दी को नमन

जो सशक्त करती देश को
और ध्वस्त करती द्वेष को
नष्टप्राय कर दे पीर को
अपनाए सबके क्लेश को

कष्टों को बाँट करे शमन
श्रद्धा से हिन्दी को नमन

पर भाषा एक झेली है
हिंद देश में पहेली है
संस्कृत जनित सब भाषाएँ
बहने हैं चिर सहेली हैं

पूरित हो निज भाषा वरण
श्रद्धा से हिन्दी को नमन

- ओमप्रकाश नौटियाल
१ सितंबर २०१५

 

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