हिंदी हमारे देश की पहचान है!
ये देवताओं का दिया वरदान है!
इस पर हमें अभिमान हो
इस पर फ़िदा जी-जान हो
बोलें सदा हिंदी ही हम
जन-जन का ये अभियान हो
जो मानते हैं, हिंदी दुर्बल-दीन हैं!
वो जान लें ये तो गुणों की खान है!
जोड़े दिलों को ये सदा
है वैभवी इसकी अदा
रुतबा कभी भी कम न हो
हो चाहे कोई आपदा
तुलसी, कबीरा, सूर से नीरज तलक!
कवियों ने हिंदी का किया गुणगान है!
गंगा-सी ये बहती चली
नित नव्य रूपों में पली
छंदों पे ये आरुढ़ हो
फिर मुक्त छंदों में ढली
चौपाई, दोहा, गीत या फिर हो ग़ज़ल!
हर रूप में इसकी अनोखी शान है!