किन शब्दों में गुणगान करूँ


ओ हिन्दीमाता तेरा
किन शब्दों में गुणगान करूँ

तू ही जिह्वा में घुली
बन तुतलाती बानी
तुझमें ही ढलकर चढ़ा
ये यौवन का पानी

कृपा बनाए रखना
अंतिम क्षणतक तेरा ध्यान करूँ

तेरे सागर में मिले
मुझको अक्षर-मोती
मैं भी होता संकुचित
अगर नहीं तू होती

संस्कार तुझसे पाए
हर भाषा का सम्मान करूँ

तू है सूरज की किरण
व्याप्त हो चुकी जग में
छँटे अंततः मेघ वो
जो आए थे मग में

यों ही फहरे विजय पताका
मैं खुदपर अभिमान करूँ

- कुमार गौरव अजीतेन्दु  
१ सितंबर २०१५

 

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