गुण-ग्राहक
हिंदी बनी
गाँधी ने निज पुत्र को, भेजा था अन्यत्र
उनकी इच्छा थी यही, हिन्दी हो सर्वत्र
अपनी माँ को त्यागकर, अंग्रेजी का मान
गौ माता प्यासी खड़ी, पाल रहे हैं श्वान
हिंदी भाषी थे नहीं, मगर हिन्द की शान
गाँधी, तिलक, सुभाष का, याद करो बलिदान
चाहे मीरा, सूर हो, चाहे तुलसी दास
विविध बोलियों ने रचा, हिंदी का इतिहास
कबिरा, तुलसी, जायसी, घनानन्द, रसखान
भक्ति-भाव से कर चुके, हिंदी का गुणगान
क्या प्रसाद क्या पंत ने, भरा विपुल भंडार
शब्द-शब्द में राष्ट्र पर, लुटा दिया है प्यार
भारत के स्वातंत्र्य में, जिस भाषा का योग
उससे बढ़कर कौन-सी, भाषा बोलें लोग
दक्षिण की अभिनेत्रियाँ, हिंदी में निष्णात
दुनिया भर में हो रहीं, सर्वाधिक विख्यात
वैज्ञानिक भाषा यही, ओष्ठ, दंत, तालव्य
बिंदु-बिंदु में सार है, शब्द-शब्द है श्रव्य
विश्व-पटल पर छा गए, मोदी के वक्तव्य
हिन्दी-हिन्दी हो गया, हिन्दी ही है भव्य
गुण-ग्राहक हिंदी बनी, मिला मान-सम्मान
सहोदरा- सम बोलियाँ, भारत की पहचान
उचित वर्तनी शब्द की, मन को दे आनन्द
मानो मुखरित पुष्प हो, अथवा मधुरिम छंद
- प्रभु त्रिवेदी
१ सितंबर २०१५
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