बोली है यह प्यार की


बोली है यह प्यार की, सीधी सरल जबान
हिंदी को अपना रहा, सारा हिन्दुस्तान
सारा हिन्दुस्तान, मर्म हिंदी का जाने
हिंदी को हर धर्म, नेह की भाषा माने
राजनीति से मात्र, बनी यह कड़वी गोली
वरना है यह राष्ट्र-प्रेम की मीठी बोली

हिंदी ने पाया नहीं, अंग्रेजी सा मान
आजादी के बाद भी, हिंदी रही गुलाम
हिंदी रही गुलाम, कई आन्दोलन छेड़े
भारत माँ के पूत, बनी अंग्रेजी भेड़ें
शासक सब गद्दार, कुतरते चिंदी-चिंदी
बिना उचित सम्मान, तड़पती मेरी हिंदी

सारे जग से है अलग, मेरा भारत देश
बोली भाषाएँ कई, सबका अपना वेश
सबका अपना वेश, सभी को हिंदी प्यारी
बोलें देश-विदेश, मगर अपनों से हारी,
चलो करें आव्हान, न हों बस कोरे नारे
अपनाएं अब देश, लगे हम हिंदी सारे

दक्षिण-उत्तर में उलझ, मिली उदासी मित्र
वरना होता देश में, हिंदी का नव-चित्र
हिंदी का नव-चित्र, साथ सबही को लाता
आपस का मन भेद, स्वयं ही मिटता जाता,
होता ना संघर्ष, हाल ना होते बदतर,
मिलता सबका साथ, न होते दक्षिण उत्तर

- अशोक कुमार रक्ताले   
१ सितंबर २०१५

 

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