अभिनंदन भारती तुम्हारा

अभिनन्दन भारती तुम्हारा

नील गगन के छोर -छोर से
कण-कण से और पोर-पोर से
गूँज रहा मृदु गान यह प्यारा
अभिनंदन भारती तुम्हारा।

अधरों ने जब वाणी पाई
प्रथम शब्द में तू ही बोली
हँसती होगी कभी-कभी तुम
सुन के मेरी बोली भोली

प्रथम लेखनी पर आ बैठीं
थाम उँगली अक्षर साधे
आढ़ी-तिरछी रेखाओं में
कभी थे पूरे कभी थे आधे

अब तक भी मैं ऐसी मैया
प्रतिदिन ढूँढूँ सबल सहारा
अभिनन्दन हे मात तुम्हारा।

भाव-कल्पना रूप तेरे ही
गीत रचूँ या कथा सुनाऊँ
अद्भुत तेरी ज्ञान निधि से
अक्षत मोती माल बनाऊँ

ज्ञानी गाएँ महिमा तेरी
सुन-सुन मन गर्वित हो जाता
मधुर तेरे शब्दों का जादू
रोम-रोम हर्षित कर जाता

देस रहें, परदेस रहें हम
निज भाषा में ही मान हमारा।

नमन तुम्हें भारती हमारा।
अभिनन्दन हे मात तुम्हारा

- शशि पाधा
८ सितंबर २०१४

 

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