अस्मिता इस देश की हिन्दी हुई
किन्तु कैसे हो सकी
यह जान लो!!
कब कहाँ किसने कहा सम्मान में,
प्रेरणा लो,
उक्तियों की तान लो!
कंठ सक्षम था
सदा व्यवहार में
स्वर कभी गूँगा नहीं था
भान था।
इच्छितों की चाह में
संदर्भ थे
दर्द में
पारस्परिक सम्मान था
भाव कैसे रूढ़ियों में बोलता?
शक्त-संवेदन मुखर था,
मान लो!
शब्द गढ़ती
भावनाएँ उग सकीं
अंकुरण को
भूमि का विश्वास था
फिर, सभी की चाहना
मानक बनी
इंगितों को
जी रहा इतिहास था
ऐतिहासिक माँग थी,
संयोग था
'भारती' के भाव का भी
ज्ञान लो!!
साथ संस्कृत-फारसी-अरबी लिये
लोक-भाषा
शब्द व्यापक ले कढ़ी
था चकित करता हुआ
वह दौर भी
एक भाषा
लोक-जिह्वा पर चढ़ी
हो गया व्यवहार
सीमाहीन जब
जन्म हिन्दी का हुआ था,
मान लो
देश था परतंत्र,
चुप था बोल से
नागरिक-अधिकार हित
ज्वाला जली
मूकजन हिन्दी लिये जिह्वाग्र पर
'मातरम वन्दे' कहें,
आँधी चली!
देश को तब
जोड़ती हिन्दी रही
ले सको उस ओज का
अम्लान लो!