विरासत

मेरी स्मृतियों के कितने ही अंश
चल रहे हैं
एक भाषा बनकर मेरे साथ

याद नहीं पहला शब्द क्या बोला था
खेल के मैदान को पार करती माँ की आवाज़
अब भी बुलाती है मुझे
अँधेरा हो गया अब लौट आओ

पाँव की मोच पर
मरहम लगाते हाथों की उँगलियाँ
आत्मा से बात करती मालूम होती हैं
उन्हें सहेजने के लिए मैं शब्द ढूँढता हूँ
वे किस भाषा से आए हैं

धीरे धीरे
बच्चे बनते जा रहे हैं अनुवाद
परम्पराएँ हो रही हैं बाज़ार
पंडालों में भरते जा रहे हैं दान पात्र
अँगरेजी की लय में बोली जा रही है हिन्दी

इस संक्रमण काल में
मेरा एक हिस्सा अतीत और दूसरा भविष्य है
पुरखों से मिली इस मिठास को
सौंपना है
इस दौड़ती हुई पीढ़ी के हाथ

फिर कहने होंगे वे शब्द जो स्मृतियों से उठ रहे हैं
फिर लिखनी होगी भविष्य के नाम चिट्ठियाँ
उन्ही अक्षरों में
जिनमें मास्टर जी की छड़ियों के सबक झाँकते हैं

अब नहीं चलेगा काम
अनुवाद की औपचारिकता से

- परमेश्वर फुँकवाल
८ सितंबर २०१४

 

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