भारती हिंदी हमारी
भव्य भारत के फ़लक की, चाँदनी हिंदी हमारी
कर रही रोशन भुवन को, भारती हिंदी हमारी
लय सुरों के साथ बचपन में सिखाए जिसने आखर
आज तक वो इस हृदय में है बसी हिंदी हमारी
मातृ-भू की अस्मिता पर, शत्रु जब हावी हुए थे
साथ थी हर जंग में यह, लाड़ली हिंदी हमारी
बंद मुख इसका किया करते थे जो अब सिर झुकाते
हर सभा में हो मुखर जब बोलती हिंदी हमारी
मान देती जो इसे, देशी-विदेशी कोई भाषा
मानती सम्मान से उसको सखी हिंदी हमारी
विश्व में गहराइयों तक जम चुकी इसकी जड़ें हैं
छाँव जग को दे रही, वट वृक्ष सी हिंदी हमारी
गीत, गज़लें, छंद, कविताएँ इसी से हैं अलंकृत
प्राण भरती हर विधा में सुरसई हिंदी हमारी
कैद जिनने था किया इसको वे अब मायूस से हैं
तोड़ पिंजड़ा उड़ रही, नभ में परी हिंदी हमारी
यह नहीं चेरी किसी की, राज इसका ताज इसका
‘कल्पना’ रानी सदा है, सुंदरी हिंदी हमारी
- कल्पना रामानी
८ सितंबर २०१४
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