हिंदी की पुकार
जो सोचूँ हिन्दी में सोचूँ
जब बोलूँ हिन्दी में बोलूँ
जनम मिला हिन्दी के घर में
हिन्दी दृश्य-अदृश्य दिखाए
जैसे माँ अपने बच्चे को
अग-जग की पहचान कराए
ओझल-ओझल भीतर का सच
जब खोलूँ हिन्दी में खोलूँ
निपट मूढ था पर हिन्दी ने
मुझसे नये गीत रचवाए
जैसे स्वयं शारदा माता
गूँगे से गायन करवाए
आत्मा के आँसू का अमृत
जब घोलूँ हिन्दी में घोलूँ
शब्दों की दुनिया में मैंने
हिन्दी के बल अलख जगाए
जैसे दीप-शिखा के बिरवे
कोई ठण्डी रात बिताए
जो कुछ हूँ हिन्दी से हूँ मैं
जो हो लूँ हिन्दी से हो लूँ
हिन्दी सहज क्रांति की भाषा
यह विप्लव की अकथ कहानी
मैकॉले पर भारतेन्दु की
अमर विजय की अमिट निशानी
शेष गुलामी के दागों को
जब धो लूँ हिन्दी में धो लूँ
हिन्दी के घर फिर-फिर जन्मूँ
जनमों का क्रम चलता जाए
हिन्दी का इतना ऋण मुझ पर
साँस-साँस तक चुकता जाए
जब जागूँ हिन्दी में जागूँ
जब सो लूँ हिन्दी में सो लूँ
--डॉ. तारा प्रकाश जोशी
९ सितंबर २०१३
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