हिन्दी से दैदीप्य
है
अंग्रेजों से हो गये, आखिर हम आजाद
लेकिन गर्वित घूमते, अंग्रेजी सिर लाद
अंग्रेजी में देखते, जो अपना उत्थान
पूरा सच ये जान लें, निश्चित है अवसान
सागर चरण पखारता, हिमगिरि मुकुट विशाल
हिन्दी से दैदिप्य है, भारत माँ का भाल
भिन्न धर्म औ जातियाँ, हैं भाषा-भाव अनेक
एक सूत्र में बाँध कर, हिन्दी करती एक
सच्चे मन से कर रहा, हूँ मैं यह आह्वान
अब हिन्दी का कीजिये, माँ-सा ही सम्मान।
-शशिकांत गीते
९ सितंबर २०१३
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