मातृभाषा के प्रति

 

 

 

 

हिंदी की पुकार

जन जन से मिल कर
शहर से निकल कर
आती है सहमी सी आवाज
कि तुम मुझे बचालो!
मुझे बचालो !
मुझे बचालो !

हर एक पहाड़ से टकराकर
हर एक नदी से नाह कर
धरती को चीर कर
हवा सी घसीट कर
आती है सहमी सी आवाज
कि तुम मुझे बचालो!
मुझे बचालो !
मुझे बचालो !

माँ की ममता से
किसान की क्षमता से
व्यवसायी के व्यवसाय से
युवा के उत्साह से
थक हार कर
आती है सहमी सी आवाज
कि तुम मुझे बचालो!
मुझे बचालो !
मुझे बचालो !

सूर्य की किरण से
धरती के रज-कण से
नेताओं के आवाहन से
इन्सान के संज्ञान से
आती है सहमी सी आवाज
कि तुम मुझे बचालो!
मुझे बचालो !
मुझे बचालो !

विज्ञान के चमत्कार से
ज्योतिष के उपकार से
दानी के दान से
विद्वान के ज्ञान से
थक हार कर
आती है सहमी सी आवाज
कि तुम मुझे बचालो!
मुझे बचालो !
मुझे बचालो !

-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
९ सितंबर २०१३

 

   

 

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