मातृभाषा के प्रति


अपने देश में हिंदी

काँटों ने सियासत के बहुत घाव दिए हैं
हिदी की इमारत को बस पथराव दिए हैं

वर्षों से संविधान में बस आम सी है वो
अपने ही घर में दूसरों से भाव दिये हैं

कब राष्ट्र भाषा होगी अपने देश में हिंदी ?
जब-जब सवाल उठ्ठे हैं अटकाव दिए हैं

हर काल में हिंदी ने ही जोड़ा है देश को
जन-जन को प्रेम प्रीत भ्रात -भाव दिए हैं

वट-वृक्ष सी इक छाँव है इसको करें नमन
हिंदी ने कई गर्व के पड़ाव दिए हैं

-सीमा अग्रवाल

१० सितंबर २०१२

 

 

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