मैं हिंदी हूँ!
मैं हिंदी हूँ
बहुरंगी भाषा हूँ
पारदर्शी और भोली हूँ
रंगीन भाषाओँ के
पक्षियों की मैं
मिली जुली चहचहाहट हूँ
अलग अलग प्रान्तों का
मुखौटा नहीं ओढती
सभी बोलियाँ
मोतियों सी
अपनी माला में
पिरोती हूँ
पंख लगा पाखी सी
हिन्दुस्तान पे उडती हूँ
भावों के गीत सुना
बस भाषाओँ से
छंद निचोड़ती हूँ और
दिलों को जोडती हूँ
मैं हिंदी हूँ !
डॉ सरस्वती माथुर
१० सितंबर २०१२
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