देह में जो रच बसी
देह में जो रच बसी ,
हिंद की हो स्वामिनी ,
सृजन का स्रोत तुम
शब्द का किलोल तुम
तुम सरल हो सात्विक
सहज निपुण आत्मिक
प्रार्थना सम गूँजती
प्रेरणा पथ भोर तुम
संत कंठ भाषिणी
ह्रदय बसत रागिनी
हो शाश्वत सम्भावना
मायावी चितचोर तुम
संस्कारित स्वर ध्वनि
राष्ट्र का गौरव बनी
"हिंदी" हो, लालित्य से
जोडती एक डोर तुम
--नूतन व्यास
१० सितंबर २०१२
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