मातृभाषा के प्रति


हिन्दी की सेवा करूँ

पुनर्जन्म है सच अगर, चाहूँ मैं हर बार,
हिन्दी की सेवा करूँ, जन्मूँ बारम्बार।
जन्मूँ बारम्बार, देश में अलख जगाऊँ,
करने को विस्तार, नए कानून बनाऊँ।
कहे कल्पना सत्य, सिर्फ यह जीवन कम है,
जन्मूँ बारम्बार, सच अगर पुनर्जन्म है।

हिन्दी भाषा श्रेष्ठतम, अद्भुत इसकी शान।
विविध विधाओं से भरा, ज्ञान समंदर जान।
ज्ञान समंदर जान, अगर गहरे जाएंगे,
मोती बहु अनमोल, हाथ अपने आएंगे।
करें पूर्ण सम्मान, ‘कल्पना’की अभिलाषा,
अद्भुत इसकी शान, श्रेष्ठतम हिन्दी भाषा।

बहु भाषाएँ सीखिये, पर हिन्दी हो खास।
हिन्दी से ही बंधुओं, बढ़े आत्मविश्वास।
बढ़े आत्मविश्वास, महक इसमें है देशी,
क्यों प्रसन्न हैं आप?चूमकर भाव विदेशी।
कहनी इतनी बात, देश की शान बढ़ाएँ,
हिन्दी ही हो खास, सीखिये बहु भाषाएँ।

लिख दो हिंदुस्तानियों, दिल हिन्दी के नाम।
हक उसका लेकर रहें, बहुत हुआ आराम।
बहुत हुआ आराम, दे रही तुम्हें वास्ता,
अनशन औ हड़ताल, शेष अब एक रास्ता।
कहे कल्पना आज, यही जन जन से कह दो,
दिल हिन्दी के नाम देशवासी अब लिख दो।

जन्में हिदुस्तान में, हिन्दी पहली मीत,
हिन्दी की थीं लोरियाँ,हिन्दी के ही गीत।
हिन्दी के ही गीत, सीखकर बड़े हुए हैं।
आज उसी का हाथ, छोड़ क्यों खड़े हुए हैं।
कहे कल्पना आज, भाव क्यों बदले मन में,
भूले क्यों यह बात, कि हम भारत में जन्मे।

हिन्दी तेरे हाल पर, मन में उठे सवाल।
एक दिवस तेरे लिए, क्यों ना पूरा साल।
क्यों ना पूरा साल, तुझे सब हैं अपनाते,
करके कुछ दिन ढोंग, साल भर फिर सो जाते।
शासन भी दिन रात, सदा अंग्रेजी टेरे,
मन में उठे सवाल, हाल पर हिन्दी तेरे।

भारत माँ का साथियों, करें आज श्रंगार।
हिन्दी का तो ताज हो, बाकी कंगन हार।
बाकी कंगन हार, हर इक भाषा अपनाएं,
देश प्रेम के भाव, भरें यह भूल न जाएँ।
सदा करें सम्मान,शान पर डले न डाका,
करें आज शृंगार, साथियों भारत माँ का।

कल्पना रामानी
१० सितंबर २०१२

 

 

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