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गंगा के प्रति मुक्तक





 

निर्मल स्वच्छ आँचल लहराती, हमको था अभिमान
धवल चाँदनी सा जल बहता, कल-कल करता गान
श्रवण इन्द्रियाँ तर जाती थीं, जिसकी मादक ध्वनियों से
पावन कभी हुआ करती थी, भारत की पहचान

-- अरुणा सक्सेना

४ जून २०१२

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