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गंगा के प्रति हाइकु





 

गंगा का पानी
बिसलरी की बोतल
दोनो बिकतीं

जो सूख गई
नदी में कूद मरी
दोनो ही गंगा

राजेन्द्र कांडपाल
*

निश्छल जल
गंगा बहती रही
धो सब पाप

नदी न बस
गंगा इक संस्कृति
सूरीनाम में

-भावना सक्सेना
*

अकेली गंगा
जग का सारा मैल
धोये तो कैसे

-स्वाती भालोटिया
*

नारी गंगा सी
किनारे पहचाने
बीच मे बहे

पर्वत पुत्री
गोमुख से निकली
खिलखिलाई

-संध्या सिंह
*

वेदों की गूंज
पावन गंगा घाट
मोक्ष का द्वार !

सुरसरिता
सींच के सभ्यताएँ
सूख न जाए !

-सुशीला शिवराण
*

पावन धारा
करे आत्मा की शुद्धि
निर्मल गंगा

पौड़ी हर की
दीयों की श्रद्धाबाती
झिलमिलाती

चुन लो मोती
संस्कार के गंगा में
लगा डुबकी

अनिता कपूर
*

हे गंगा मैया !
हो जीवन दायिनी
अमृत धार

शास्वत चिर
पतित उद्धारिणी
वत्सला गंगे
-कल्पना बहुगुणा
*

दशम द्वार
सुशोभित गुरू-सी
ज्ञान की गंगा

-सतपाल ख्याल
*

ईश का द्वार
प्रकृति उपहार
गंगा की धार

ममता भरी
मन्दाकिनी की धार
हमें सींचती

-सरस्वती माथुर
*

गंगा पावन
अभियान चलाओ
स्वच्छ बनाओ

निर्मल गंगा
खुशहाल जीवन
हरी हो धरा

-- शशि पुरवार

२८ मई २०१२

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