ऐ भारत के जन मानस
चुनौती को स्वीकार करो
रोगिन हो गई सुर सरिता का
कुछ तो अब उपचार करो
हिम पर्वत की गोदी खेली
धरती के संग पली बढ़ी
भागीरथ की थामे अंगुली
दूर डगर निर्बाध बही
पावन जल धारा को छूने
झुके तरू, पिघले पाषाण
पग पग मिलने आईं नदियाँ
झरनों ने आ किया प्रणाम
युगों युगों की थाती गँगा
पुरखों पर उपकार करो
क्षीण हो रही देव नदी का
जागो, कुछ सुधार करो
मलिन हो रहे पावन तट अब
धूमिल जल की धार हुई
धूली धूसरित हुई समीरण
नभ में हाहाकार हुई
क्षीण हो गए घंटी के स्वर
साँझ आरती मद्धम दीप
भीड़ में खोये मेले ठेले
ढूँढे न मिलती जलसीप
लहरों में बह रहा हलाहल
कुछ तो सोच विचार करो
हे भारत के जन मानस
माँ गंगा का उद्धार करो
शशि पाधा
२८ मई २०१२ |