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पावन धार गंगा है





 

हिमालय से जो निकली है वो पावन धार गंगा है
लिये सावन कई जल के ये निर्मल धार गंगा है !

क्षितिज के आर गंगा है क्षितिज के पार गंगा है
धरा पर स्वर्ग से उतरी ईश अवतार गंगा है !

उफनती है कभी उदण्ड जन पर वार गंगा है
प्रकृति से लड़ पड़ोगे गर तो हाहाकार गंगा है !

राह की अन्य नदियों पर सुखद उपकार गंगा है,
उन्हे गंगा बनाने को सदा तैय्यार गंगा है !

कहीं उद्धार गंगा है कहीं दुश्‍वार गंगा है
नहीं जिनका कोई उनका भी बेड़ा पार गंगा है !

कहीं है शान्त शर्मायी, कहीं रफ़्तार गंगा है
साधु, संतों का मुनियों का सकल संसार गंगा है !

जो बंधन मुक्त उनका आखिरी संस्कार गंगा है
हरि के पास जाने को, हरि का द्वार गंगा है ,

लहरती झूमती आती लजाती नार गंगा है
झरे झर-झर के झरनों से, मधुर मल्हार गंगा है !

अलसती नींद में सोई कहीं सुकुमारि गंगा है
कहीं फ़ैली समंदर सी ये पारावार गंगा है !

अचूक निदान रोगों का क्षार उपचार गंगा है
लोकोपचार गंगा है ये खेवनहार गंगा है !

ये कैसा आज असमंजस बड़ी लाचार गंगा है,
पाप धोएगी किस किस के फँसी मँझधार गंगा है !!

-ओंम प्रकाश नौटियाल
४ जून २०१२

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