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लो हम भी संत हो गए





 

गंगा केवल नदी नहीं है

गंगा केवल नदी नहीं है,
मां की ममता है,

सदा सींचती आई संस्कृति
नव सोपान दिए
कल कल छल छल बहती जाती
जग का भार लिए
इसकी पावनता की जग में
कोई समता है?

जटा जूट से शिव की उतरी
थी, निर्मलता लेकर
किन्तु मिला क्या इसको
जग को, जीवन का फल देकर
अन्नपूर्णा कल्प वृक्ष सी
इसमें क्षमता है,

आज कह रही सुरसरि हमसे
मन में पीर लिए
कौन बनेगा भागीरथ जो कलि का कलुष हरे
मिले ज्योति से ज्योति, दीप से
तम भी डरता है,

-डॉ. मधु प्रधान
४ जून २०१२

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