और...
गंगा की कथा यह है पुरानी
कभी बाबा से सुना था -
'काम पूरा हुआ
अब गंगा नहाये'
वह कहावत हुई झूठी
घाट अब हैं धूल-खाये
रह गई है
पोथियों में
सिर्फ़ गंगा की कहानी
यहाँ गंगा-घाट पर
अब नहीं जुड़ते, बंधु, मेले
चल रहे हैं
नये परजातंत्र के दिन-रात खेले
पूछते हैं
दास कबिरा -
कहाँ बाँचें संतबानी
हिमशिखर पर देव विषपायी -
सुना, वह हुआ अंधा
बोतलों में बंद जल का
चल रहा है खूब धंधा
राख होकर
रह गया
भागीरथी का, बंधु, पानी
कुमार रवीन्द्र
२८ मई २०१२ |