नगर बसाये तटों पर, हरियाये वन बाग
सूख रहा है स्रोत वह, जाग बावरे जाग
मात्र नदी गंगा नहीं, यह जीवन की धार
शुद्ध ह्रदय, ले आत्म बल, अब तो इसे संवार
अगर हौसला ह्रदय में, हो दृढ़ निश्चय स्नेह
रहित प्रदूषण गंग हो, तनिक नहीं संदेह
नगर निकट आते हुई, श्लथ लहरें गति मंद
तड़प कहे भागीरथी, करो प्रदूषण बंद
डॉ. मधु प्रधान
४ जून २०१२ |