उच्च हिमालय पार कर मैदानों की ओर।
चली स्वच्छंद भगीरथी, होकर भाव
विभोर
गो मुख से निकली,किया, धरती को प्रस्थान
हरिद्वार में पहुँचकर, मिला उसे विश्राम
गंगा से है विश्व में, भारत की पहचान
लाखों जन जुटते यहाँ, करते पावन स्नान
सलिला पाप विनाशिनी, करती रोग निदान
दुख हरणी,सुख दायिनी, देती जीवन दान
आए जो इस बार हम, गंगा माँ के द्वार
कहीं नहीं हमको दिखी, इसकी निर्मल धार
रोग मुक्त सबको किया, रोगी हो गई आप
दूषित खुद होने लगी, धोते धोते पाप
गंगा मैली हो चली, कहिए दोषी कौन
चुप चुप है सरकार ये, जनता भी है मौन
जज़्बा है कुछ शेष गर, माँ से है अनुराग
वैतरणी को तार दें, जाग मनुष अब जाग
क्या समझाए लेखनी, बाँट रही जज़्बात
कहे आपसे कल्पना, छोटी सी यह बात
कल्पना रामानी
४ जून २०१२ |