हर-हर गंगे, हर-हर गंगे
कैसे उऋण हो
ऋण से तुम्हारे
ये संसार, हे! माँ गंगे
हुई वसुंधरा पावन तुमसे
हरे सकल पाप,
तुमने हर जन के
पतित पावनी, आनंद दायिनी
सगर पुत्र तारिणी,
भागीरथी
किस नाम से पुकारें माँ हम तुमको ?
जीवन
धन्य हुआ हमारा
पाकर पावन स्पर्श तुम्हारा
तुम्हारे अंश से ही गणपति
कहलाते हैं
विघ्नविनाशक
धुल जाते हैं पाप सभी के
तुम्हारे पावन अंक में आकर
जय जयकार करे
जगत तुम्हारा
हर-हर गंगे, हर-हर गंगे
-विक्रम सिंह
४ जून २०१२ |