माँ भारती का साज है-शृंगार है
गंगा
जन- जन की प्राण, आस्था, अधिकार है गंगा
आशुतोष की जटाओं से निकल बही
गोमुख से स्वर्गधाम की रसधार है गंगा
मंदाकिनी,भागीरथी, सलिला सनेह की
गंगोत्री ,ऋषिकेश है,हरिद्वार है गंगा
मंत्रोच्चार, यज्ञ, ऋचा,वेद, आस्था
संध्या की पुण्य आरती, पुकार है गंगा
इस भाव- भूमि की अमिट पहचान हिम नदी
विश्वास और भक्ति की फुहार है गंगा
अनुपम प्रकृति का राष्ट्र को उपहार है गंगा
है आन-मान, देश का विचार है गंगा
अस्मिता की आंच है, अंगार है गंगा
सौगंध है, अभिमान है, तलवार है गंगा
नाले-नदी-गटर सभी गंगा में जा रहे
अब कितना कचरा ढो रही लाचार है गंगा
दुर्गन्ध, प्रदूषण है इसे रोकना होगा
क्या रोती कलपती हुई स्वीकार है गंगा ?
पवित्र आचमन, मृदुल आभार है गंगा
शुचिता से पूर्ण स्नान तो साकार है गंगा
लहरों में हो निखार तुमसे प्यार है गंगा
तुमको प्रणाम मेरा बार बार है गंगा
प्रो. विश्वम्भर शुक्ल
२८ मई २०१२ |