संस्कृति की आधार है गंगा
आमजनों का प्यार है गंगा
जीवनदायिनी, कष्ट निवारणि
विश्वासों की धार है गंगा
जीते गंगा, मरते गंगा
श्रद्धा से स्वीकार है गंगा
पाप धो रही है युग युग से
पर कुछ का व्यापार है गंगा
हरिद्वार से कोलकत्ता तक
कचरों का निस्तार है गंगा
निर्मल जल की जो धारा थी
अब लगती बीमार है गंगा
भारतवासी की माता अब
सुमन बहुत लाचार है गंगा
श्यामल सुमन
२८ मई २०१२ |