अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

गंगा का जल





 

गंगा का जल मिला आचमन के लिए
किन्तु अब रह गया है नमन के लिए

स्वर्ग से अवतरित दिव्यता को लिए
पाप, संताप और दुःख शमन के लिए

ध्येय तो इस धरा का ही उद्धार है
पेड़, पौधे, मनुज, वन, सुमन के लिए

अनवरत पुण्य की धार बहने लगी
बढ़ चली गंगा, यमुना मिलन के लिए

आज गंगा स्वयं में सिमटने लगी
कम हुआ नीर उसका स्वयं के लिए

आगे बढती रही, पाप ढोती रही
चल पड़ी गंगा, सागर मिलन के लिए

गंगा जल की तरह स्वच्छ जीवन बने
गंगा वर ऐसा दे दो "किशन" के लिए

कृष्ण कुमार तिवारी 'किशन'
२८ मई २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter