गंगा का जल मिला आचमन के लिए
किन्तु अब रह गया है नमन के लिए
स्वर्ग से अवतरित दिव्यता को लिए
पाप, संताप और दुःख शमन के लिए
ध्येय तो इस धरा का ही उद्धार है
पेड़, पौधे, मनुज, वन, सुमन के लिए
अनवरत पुण्य की धार बहने लगी
बढ़ चली गंगा, यमुना मिलन के लिए
आज गंगा स्वयं में सिमटने लगी
कम हुआ नीर उसका स्वयं के लिए
आगे बढती रही, पाप ढोती रही
चल पड़ी गंगा, सागर मिलन के लिए
गंगा जल की तरह स्वच्छ जीवन बने
गंगा वर ऐसा दे दो "किशन" के लिए
कृष्ण कुमार तिवारी 'किशन'
२८ मई २०१२ |