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हिमालय की गोद में

 


 
हिमालय की गोद में
बैठी गंगा करती है
अठखेलियाँ

अपनी ही मौज़ों संग
झूमती लहराती
उद्दाम वेग से
बहती है बिंदास।
गढ़ती है अपना वजूद
मगर पिता की
गोद से उतरते ही
झिझक कर
थम जाती है वो
धीमे धीमे
मंथर गति से
चलती कुल वधू सी
रचती है सन्ततियाँ।

सागर में समा कर
हो जाती है सागरमय
फिर तो सागर भी
रँग जाता है
उसके रंग में
हो जाता है वह
गंगा का और
कहलाता है गंगा सागर
गंगा का सागर

-उर्मिला शुक्ल
१७ जून २०१३

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