अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

शीर्ष तुंग से

 


 
शीर्ष तुंग से क्षरित
दुग्ध धार सी धवल
सर्पिणी सी इठल
मस्त मेघ सी मचल
यौवन प्रवेग से
शिव जटाजूट घेर
स्नेहसिक्त शैलखण्ड
उर कठोर दम्भ तोड़
सारे तटबन्ध तोड़
अडिग यतीचित्त को
करती हो निर्मल
बहती हो कलकल

पवन सा उन्मुक्त मन
भावयान पर सवार
नेह्दृष्टि आकुल
प्रणयवेग का प्रहार
बहचला संगसंग ...
स्थिर चलायमान
लुढ़कता है गोलगोल
घिस जाता हर कोण
चटकता है चूर चूर
जीवन रसधार में

आतप मरुभूमि हृदय
अवनि के प्रस्तार में
सिंचित तरू कानन के
कोमल नवांकुरों से
उपजती है स्रष्टि नवल
क्षैतिज आलोक में
नदी नारी का प्रवाह
गहन गम्भीर हो
शांत मन धीर हो
बहती है सागर को
सभ्यता संस्कृति के
अद्भुत हरितालोक में

कालचक्र पर सवार
उड़ चलने मेघ संग
लेने फिर जीवन नया
समाधिस्थ हिमांगन में
पुरूष अभिमान का
अतुल आकार तोड़्
उर बना मोहसिक्त
रेत के कणों में छोड़
धूल धरणि धूसरित
विरहाकुल हो ढूँढता
आँधी तूफान में
मेघ मेघ खोजता
नदी अस्तित्व को

-श्रीकांत मिश्र कान्त
१७ जून २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter