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गोमुखी प्रवाह |
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गोमुखी प्रवाह जानिये पवित्र
संसृता
कि भारतीय धर्म-कर्म वारती बही सदा
दत्त-चित्त निष्ठ धार सत्य-शुद्ध वाहिनी
कुकर्म तार पीढ़ियाँ उबारती रही सदा
पाप नाशिनी सदैव पाप तारती रही
उछिष्ट औ’ अभक्ष्य किन्तु धारती गही सदा
क्षुद्र वंशजों व पुत्र के विचार राक्षसी
सदैव मौन झेलती पखारती रही सदा
हम कृतघ्न पुत्र हैं या दानवी प्रभाव है,
स्वार्थ औ प्रमाद में ज्यों लिप्त हैं वो क्या कहें
ममत्व की हो गोद या सुरम्यता कारुण्य की,
नकारते रहे सदा मूढ़ता को क्या कहें
इस धरा को सींचती दुलार प्यार भाव से,
उस धार संग जो कुछ किया सो क्या कहें
अमर्त्य शास्त्र से धनी प्रबुद्धता असीम यों,
आत्महंत की प्रबल चाहना को क्या कहें
शस्य-श्यामला सघन, रंग-रूप से मुखर
देवलोक की नदी है आज रुग्ण दाह से
लोभ मोह स्वार्थ मद पोर-पोर घाव बन
रोम-रोम रीसते हैं, हूकती है आह से
जो कपिल की आग के विरुद्ध सौम्य थी बही
अस्त-पस्त-लस्त आज दानवी उछाह से
उत्स
है जो सभ्यता व उच्च संस्कार की
वो सुरनदी की धार आज रिक्त है प्रवाह से
- सौरभ
१७ जून २०१३ |
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