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गंगा हम तेरे अपराधी

 

 
गंगा हम तेरे अपराधी
तेरी भेंट-सुधा जीवन की, हमने व्यर्थ गँवा दी

युग युग के इतिहासों को ही हमने फ़िर दुहराया
उपहारों का मूल्य तनिक भी हमने नहीं लगाया
आगत को कर रखा उपेक्षित, सीखा नहीं विगत से
बिना विचारे पल के सुख में सारा समय बिताया
जनहित से हो विमुख समेटा किये स्वयं कोम चाँदी
गंगा हम तेरे अपराधी

प्राणदायिनी धाराओं में रहे घोलते विष हम
जो है हमें अवांछित वह ही रहे उंड़ेलते नित हम
तेरी औषधियों को हमने सौंपी निशिदिन व्याधी
मूँदे नयन सत्य से हो कर रहे नहीं परिचित हम
जान बूझ कर हैं नकारते बातें सीधी सादी
गंगा हम तेरे अपराधी

दोषी हैं हम तट पर तेरे करते रहे प्रदूषण
सीमाओं के पार किया है उद्गम का भी शोषण
अग्रिम चेतावनियाँ हमने रह रह कर दुत्कारीं
रहे टालते कल पर ही हर संभाविर संशोधन
दोष संहितायें हम सबने खुद पर खुद ही लादी
गंगा हम तेरे अपराधी

विदित हमें हम अब भी उलटा चक्र घुमा सकते हैं
फ़िर से वैभव तेरे जल का वापिस ला सकते हैं
रख सकते हैं उग्र कामनायें अपनी अनुशासित
अमृतमय सुख तेरे तट पर फ़िर बरसा सकते हैं
पर हम होते अपने ही संकल्पों के प्रतिवादी
गंगा हम तेरे अपराधी

- राकेश खंडेलवाल
१७ जून २०१३

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