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विश्वासों का दीप |
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गंगा मैया हर लेना तुम,
सारा कलुष हमारा
करूँ अर्चना उस माटी की
जिस पर चरण तुम्हारा
बूँद-बूँद जल की अमृत बन
बनती जीवन धारा
विश्वासों का दीप जलाकर
स्नेह-समर्पित सारा
लहरों सा चंचल मन मेरा
धड़कन जल की धारा
स्वप्न भँवर से मन को छलते
तुम ही एक सहारा
जीवन की शाश्वत गति खोकर
जब राह मुक्ति की पाऊँ
तेरे आँचल की छाया हो
चिर निद्रा में सो जाऊँ
हाट, घाट,
गलियाँ, गलियारे
बीता बचपन सारा
मुझे
बुलातीं हैं स्मृतियाँ
स्नेहिल संसार तुम्हारा
-पद्मा मिश्रा
१७ जून २०१३ |
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