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देखो गंगा क्या कहती है

 

 
गुमसुम– गुमसुम
सिसक सिसक क्यों एकाकी बहती रहती है
देखो गंगा क्या कहती है?

सुनो कह रही
“छला जा रहा है मुझको कह मुक्तिदायनी
जबकि अब मैं मात्र बन चुकी– हूँ कचरा–मल–मूत्र वाहिनी”
सही बात हरपल-हरक्षण वह उपहासित होती रहती है
देखो गंगा क्या कहती है?

“जब–तब देखो
अपने बिल से निकल–निकल बहु संत महात्मा–
आते तो रखती निकाल उर, हो जाती मैं पुनः हुतात्मा
स्वार्थ सिद्ध कर फिर वह टोली कितना देर ठहरती है”
देखो गंगा क्या कहती है?

“संत महात्मा
नेता जनता आंदोलन कर लेते नाम
पर वह मेरे लिये नहीं प्रिय, स्वार्थ सिद्धि के हेतु तमाम”
फिर भी कितनी भोली भावुक हर आतप सहती रहती है
देखो गंगा क्या कहती है?

कहते अरबों
बहा दिये पर ऑंचल तो मैला का मैला
खुशी, पुत्र हो गये अरबपति मेरा क्या? तन रहे कुचैला”
हाय! मात्र तन ही क्या मन से भी वह सदा दहकती है
देखो गंगा क्या कहती है? 

- रामकृष्ण द्विवेदी मधुकर
१७ जून २०१३

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