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जो
सदियों से वंदित |
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जो सदियों से वंदित हो, भू
पर बही है।
वही आज गंगा,
प्रदूषित हुई है
प्रकृति, जीव,
जन को सहज जोड़ती है
लिए अंक अमृत कलश दौड़ती है
नए तट सृजित कर, सतत मातु गंगा
हर चट्टान के दंभ को तोड़ती है
अनुपम सी छवि जिसकी शोभित रही है
वही आज गंगा
प्रदूषित हुई है
किए दोष
लोगों ने इसके हवाले
कूड़ा भी, पशुओं के मुर्दे भी डाले
जहाँ से निकलकर बही धार पावन
मिले इसमें आकर सादा गंदे नाले
जो जन-जन के कष्टों को हरती रही है
वही आज गंगा
प्रदूषित हुई है
अगर छेड़ें
अभियान, सब एकजुट हो
नया रूप गंगा का, निर्मल सरस हो
धरा भी प्रफुल्लित धरे रूप अनुपम
नवल स्वच्छ धारा का फिर से उदय हो
खुशी
से भरे मन से, हर जन कहेगा
कि माँ गंगा कितनी
विभूषित हुई है
लक्ष्मीदत्त तरुण
१७ जून २०१३ |
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