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गंगा-
कुछ क्षणिकाएँ |
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१
गंग जमुन की बहती धार
प्यास भुजाएँ
खेत हजार
अन्न लहलहायें
सींचें धरती बारम्बार
-मंजुल भटनागर
२
खिल खिल करती
मचलती, खेलती
आह्लादित उर्मियों को
अपने सीने पर
बच्ची सी चढ़ाये, चिपकाए
मस्ती में झूमती, इठलाती
बहने वाली गंगा
खो गयी है
जाने कहाँ ?
-अनिल कुमार मिश्र
३
गंगा है
माँ की माँ
तभी तो
समा जाती है
गंगा की गोद में
एक दिन माँ भी।
-राजेंद्र कांडपाल
४
इस देश की बुद्धिमत्ता
कुम्भकर्ण की नीद सो रही है
उसे
पता ही नहीं
कि गंगा बीमार हो रही है
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
१७ जून २०१३ |
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