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तुम
अमृत की धार हो गंगे |
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तुम अमृत की धार हो, गंगे
धरती का शृंगार हो, गंगे
हर लेती हो ताप को पल में
जग की तारनहार हो, गंगे
मुश्किल, आसाँ राह से चलकर
तुम करती उपकार हो, गंगे
कितनी अद्भुत और हो पावन
तुम अनुपम उपहार हो, गंगे
मन-मंदिर है स्थान तुम्हारा
वंदन
बारम्बार हो, गंगे
-कृष्ण कुमार तिवारी किशन
१७ जून २०१३ |
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