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भू को चली भागीरथी

 

 
स्वर्ग के सुख त्यागकर, भू को चली भागीरथी
पर्वतों की गोद से, होकर बही भागीरथी

कैद कर अपनी जटा में, शिव ने रोका था उसे
फिर बढ़ी गोमुख से हँसती, वेग सी भागीरथी

धाम कहलाए सभी जो, राह में आए शहर
रुक गई हरिद्वार में, द्रुतगामिनी भागीरथी

पाप धोए सर्व जन के, कष्ट भी सबके हरे
और पूजित भी हुई, वरदायिनी भागीरथी

अब युगों की यह धरोहर, खो रही पहचान है
भव्य भव की भीड़ में, बेदम हुई भागीरथी

घाट टूटे, पाट रूठे, जल प्रदूषित हो चला
कह रही है दास्ताँ, दुख से भरी भागीरथी

देवताओं की दुलारी, दंग है निज हश्र से
मिट रहा अस्तित्व अब तो, घुट रही भागीरथी

कौन है? संजीवनी लाए, उसे नव प्राण दे
अमृता मृत हो चली, नाज़ों पली भागीरथी

जाग रे इंसान, कुछ ऐसे भगीरथ यत्न कर
खिलखिलाए ज्यों पुनः, रोती हुई भागीरथी

-कल्पना रामानी
१७ जून २०१३

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