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देखिये साहब

 

 
फ़क़ीरों की तरह धूनी रमाकर देखिये साहब
तबीयत से यहाँ गंगा नहाकर देखिये साहब

यहाँ पर जो सुकूँ है वो कहाँ है भव्य महलों में
ये संगम है यहाँ तम्बू लगाकर देखिये साहब

हथेली पर उतर आयेंगे ये संगम की लहरों से
परिंदों को मोहब्बत से बुलाकर देखिये साहब

ये गंगा फिर बहेगी तोड़कर मजबूत चट्टानें
जो कचरा आपने फेंका हटाकर देखिये साहब

कई सूरज कई चंदा की लौ इसमें दिखाई दे
नदी की लहर में दीपक जलाकर देखिये साहब

यहाँ सम्राट बनना है तो बनिए हर्ष के जैसा
खजाने को गरीबों में लुटाकर देखिये साहब

यहाँ कोहरे में भी नंगे बदन कुछ लोग मिलते हैं
इन्हें श्रद्धा से इक चादर चढ़ाकर देखिये साहब

ये इक मेला है जिसमें कुछ बिछड़ जाते हैं अपनों से
बिछड़ने वालों को फिर से मिलाकर देखिये साहब

-जयकृष्ण राय तुषार
१७ जून २०१३

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