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दो सवैये

 

 
विष्णुपदी शिवशीश सुशोभित, आर्यधरा शुचि पोषक गंगा
रोगनिवारक साधक के हित, पुण्य पवित्र सुयोजक गंगा
निर्मल निर्झर धार बहे वह, थी अपशिष्ट सुशोधक गंगा
क्षालन पाप किया इतना शुचिता, अब खोकर भौचक गंगा

-डॉ आशुतोष वाजपेयी



ब्रह्म कमण्डल वासिनी तो कहीं, विष्णुपदी कहलाती है गंगा।
शिव सिर मालती माल बनी कहीं, भागीरथी बन जाती है गंगा।।
मंदाकिनी, भोगवती बनके तब, जाह्नवी नाम धराती है गंगा।
नाम अनेक है काम अनेक है, जीवन को महकाती है गंगा।।

-डॉ. रंगनाथ मिश्र
१७ जून २०१३

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