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गंगे! अच्छा हुआ

 

 
गंगे!
अच्छा हुआ, हमेशा
दूर रही तू दिल्ली से

देख देख यमुना की हालत
रोए रोज हिमालय
सीधी सादी नदी हो गई
उन्नति का शौचालय

ले जा
अपनी बहना को भी
दूर कहीं तू दिल्ली से

दिल्ली की नज़रों में अब तू
केवल एक नदी है
पर बूढ़े खेतों की खातिर
अब भी माँ जैसी है

कह तो
क्या भविष्य देखा जो
दूर बही तू दिल्ली से

दिल्ली तुझ तक पहुँचे उससे
पहले राह बदल दे
और लटें कुछ अपनी खोलें
जाकर शिव से कह दे

मत हो
यूँ निश्चिंत, जियादा
दूर नहीं तू दिल्ली से

-धर्मेन्द्र कुमार सिंह
१७ जून २०१३

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